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kreupasanam

कृपा का निवास

अलाप्पुझा सूबा, कलावूर, भारत (B.115/ERE-13/98-832),
केरल सरकार के तहत पंजीकृत (पंजीकरण संख्या A-690/92)

इतिहास

इस ईश्वर सेवा केंद्र का नाम क्रूपासनम है।बाइबल में क्रूपासनम उस स्थान को कहते है, चुनी हुई जनता जब वादा किये हुये देश के खोज में रेगिस्तान से सफर कर रही थी, उनके शक्ति चैतन्य के रूप में उनके बीच यात्रा करता, गवाही की मंजुषा के ऊपर स्तापित पंख फैलाये खेरूबो के मध्य ईश्वर के उपस्तिति के स्थान को कहते है।

1989-90 के दौरान, यह सेवाएं, जब पहली बार सामने आई थीं, प्रारंभिक अवस्था में केवल परामर्श थीं। तब प्रभु ने परामर्श के लिए आने वालों को अच्छे अनुभव दिए। प्रार्थना के लिए आने वालों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती गई। इसलिए 1990 में, जीवन की समस्याओं के बारे में बात करने और प्रार्थना करने वालों को एक साथ लाकर इसे एक दिवसीय ध्यान में बदल दिया गया। फिर समुदाय का विकास हुआ और 27 नवंबर, 1991 को अर्थुनकल चर्च में, यह आउट रीच रिट्रीट में विकसित हुआ। उस अधिवेशन में करीब 5,000 लोग शामिल हुए। एक महीने बाद, 21 दिसंबर, 1991 को, प्रभु ने इसे एक प्रमुख तटीय अधिवेशन तक बढ़ा दिया, जिसे तटीय अनुग्रह उत्सव कहा जाने लगा । फिर, अप्रैल 1991 में, प्रभु ने विलुप्त समुद्र तटीय सांस्कृतिक परंपराओं के पुनरुद्धार के लिए योजना को जोड़ा, और इन सेवाओं को एक संबोधन देने के हिस्से के रूप में, क्रूपासनमका नाम मन में प्रकट हुआ (अर्थात, बिना सोचे-समझे)। हाँ, मैंने कई बार जनता के सामने प्रकट किया है कि क्रूपासनम की सेवकाई का नाम प्रभु द्वारा दिया गया है । क्रूपासनम नाम दिसंबर 1991 से सेवा के कार्यो में इस्तेमाल किया गया। जब अनुग्रह की कृपा के तत्वावधान में संचालित कई सेवाओं को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, तब मैंने ईश्वर द्वारा दिए गए उस दिव्य नाम का अर्थ खोजना शुरू किया।

वह खोज परमेश्वर के लोगों के मुक्ति संघर्षों के बीच में आई, जिसका नेतृत्व सच्चे मूसा ने किया, प्रतिज्ञा की भूमि की खोज में रेगिस्तान के माध्यम से और उनके ऐतिहासिक शासक, परमेश्वर की गवाही की मंजुषा को लेकर।

(निर्गमन ग्रन्थ : 24,40, संख्या: 4 अध्याय संदर्भ)



वादा की मंजूषा और मरियन विधान संधि समर्पण प्रार्थना

पुराने नियम में "परमेश्वर का वचन" पत्थर की पट्टियों पर खुदा हुआ था और विधान की मंजूषा में रखा गया था, संत. जॉन ने इस तरह से रहस्योद्घाटन प्राप्त किया कि कोई भी समझ सके कि नए नियम में विधान की मंजूषा पवित्र माता है। हम इसे तब समझ सकते हैं जब हम प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में इन पदों को पढ़ते हैं, "परमेश्वर का मन्दिर स्वर्ग में खोला गया, और उस में उसकी विधान की मंजूषा देखा गया।" (प्रकाशितवाक्य 11:19)। अगले पद में, यूहन्ना स्वयं प्रकट करता है कि विधान की मंजूषा कौन है। “सूर्य ओढ़े एक स्त्री, जिसके पांव तले चन्द्रमा है, और उसके सिर पर बारह तारों का मुकुट है। वह गर्भवती थी " (प्रकाशितवाक्य 12: 1-2)। यह कहना कि वह गर्भवती है क्योंकि पुराने नियम में परमेश्वर के वचन विधान की मंजूषा के अंदर पत्थर की पट्टियों पर लिख कर रखे गए थे। इसके स्थान पर नए नियम के विधान की मंजूषा के गर्भ में जीवित परमेश्वर का वचन है, यह स्पष्ट करने के लिए कि परमेश्वर ने इसे पत्थर में नहीं, बल्कि मांस में जमा किया है। यही कारण है कि नए नियम में विधान की मंजूषा की व्याख्या परमेश्वर की माता के रूप में की गई है। यही कारण है कि चर्च लूतिनिया में माँ को " विधान की मंजूषा " के नाम से संबोधित करती है।

मरियन विधान प्रार्थना जीवित परमेश्वर की जीवित आत्मा से एक प्रेरणा का परिणाम है। कृपासनम धर्म-सामाजिक-सांस्कृतिक केंद्र के इतिहास को तीन चरणों में उजागर किया जा सकता है। पहला - 1989 से 2000, मछुआरों और तटीय क्षेत्र के लोगों के बीच सुसमाचार।

मरियन वर्ष की घोषणा के अनुसार परिवार इकाई में जपमाला का आयोजन किया गया, फिर पल्ली स्तर पर और 1987 में 11 अगस्त को क्षेत्रीय स्तर परयह संपन्न हुआ। 7000 भगतो ने मोमबत्तियों के साथ रात भर बिना ब्रेक के जपमाला का पाठ किया। और सुबह हमारी माता के भक्त धन्य माता की मूर्ति के साथ ओमानप्पुझा सेंट जेवियर्स चर्च में गए।

1987 अगस्त 12 -पहली बार अपने पुरोहिताई में, मैं इडुक्की-सीएमआई मठ में करिश्माई नेताओं के लिए एक रिट्रीट आयोजित करने के लिए अपने धर्म प्रांत के बाहर गया।.

1989 के ईस्टर के समय हमारी एक वाइन पार्टी हुयी और वाइन रेव. सिस्टर एमिलदा द्वारा दिया उपहार था। वाइन 5 साल पुराना था या और कोई कारण वश हम सब उसको पी कर बेहोश हो गये, उल्टियां करने लगे और इस अजीब वाक्या की शिकायत लग गयी। मेरे और मेरे दोस्तों के खिलाफ एक स्वतःस्फूर्त हंगामा और आक्रोश पैदा हो गय। मेरा नाम बूरे पादिरियों के लिस्ट में पड़ गया। मैं इस बारे में कुछ ज्यादा नहीं बोलना चाहताऔर उसकी जरूरत भी नहीं है। वास्तव में उस घटना ने मुझे मौका दिया, उग्रता से जपमाला का प्रार्थना करने का।

30 दिन बीत गए और 30 रातें, मैंने जपमाला की प्रार्थना की और प्रभु से प्रार्थना की। माँ ने मुझे विनम्र बनने में मदद की, धन्य माता का हाथ पकड़कर उनकी इच्छा का पालन किया और उनका धन्यवाद किया।

जून 8, मेरा जन्मदिन - इस दिन मुझे घन्य माता के पवित्र ह्रदय कीएक मूर्ति मिली कट्टूर मोन्सिन्योर जोसफ थेककेपालकाल के घर से, उस घर के माँ ने मुझे धन्य माता की मूर्ती दी थी।

मेरी मेज पर धन्य माता की मूर्ति के आने के तुरंत बाद, लोग परामर्श, पाप-स्वीकारोक्ति और इस तरह के काम के लिए मेरे पास आने लगे और इस तरह प्रभु की महिमा हुई और मेरा जीवन अंतहीन कृतज्ञता से भर गया।

के.डी. जॉर्ज- नामक एक प्रसिद्ध और उत्कृष्ट करिश्माई नेता मेरे पास आये और उन्होंने मुझसे अपनी करिश्माई प्रार्थना टीम का आध्यात्मिक निदेशक बनने का अनुरोध किया।

अंतत: तटीय क्षेत्र और वहां के लोगों के सुसमाचार प्रचार के मेरे प्रयासों का अंत हो गया, सुसमाचार प्रचार के क्षेत्र में एक नए प्रयास के लिए।

कन्नूर के कुन्हिमंगलम से त्रिवेंद्रम में पुथेनथोप तक चलने वाले रोज़री विजन रिट्रीट का आयोजन किया गया, जिसमें दृश्यों द्वारा चित्रण किया गया, संथानपारा के बबिचन जो केरल में हजार मोतियों की माला बिनती के परिचयकर्ता हैं, की गवाही द्वारा समर्थित शब्दों में व्याख्या की गई, और इस प्रकार रोज़री प्रार्थना मिशन से जुड़े कई लोग थे।

मार् चकियाथ एर्नाकुलम-अंगमाली आर्च डायोसीज़ के सहायक बिशप ने माँ की मूर्ति को आशीर्वाद दिया और सैकड़ों वाहनों और लोगों के साथ गाते हुए कोचीन से अलाप्पुझा के बीच से सभी हिस्सों से भक्त माला की प्रार्थना करते हुए तटीय क्षेत्र को कवर करते हुए कलावूर पहुंचे रात के लगभग 2 बजे और पवित्र प्रतिमा को कृपासनम मैरिएन श्राइन के मुख्य पोर्टल पर स्थापित किया गया 25 अक्टूबर 2003को ।

कृपासनम के द्वार पर धन्य माता की पवित्र प्रतिमा के प्रतिष्ठान का वार्षिक उत्सव मानाने के लिए जलूस आयोजित किया गया, एक कोचीन से शुरू हुआ और पुन्नाप्रा सेंट जोसेफ चर्च से भी एक जुलूस आयोजित किया गया था और जुलूस कृपसनम पहुंचे। आर. विजयकुमार आए, जो हर तरह से कृपासनम आंदोलन के प्रेरित बने और साथ ही आध्यात्मिक या भौतिक सभी गतिविधियों का एक अविभाज्य तत्व बन गए।

सन 2004 मे 7 दिसंबर दोपहर के 2:30 बजे अलेप्पी के मैरियन रिट्रीट सेंटर, कलावूर, अलेप्पी धर्म प्रांत - अलाप्पुझा - 688522 केरल, दक्षिण भारत में धन्य माँ प्रकट हुयी थी।

जब धन्य - मदर मैरी स्वर्गीय सुंदरता के चांदी के भूरे रंग की पोशाक में प्रकट हुयी उन्होंने एक छोटी सजावटी घड़ी पहन रखी थी और उसमे सुई 10,8 को दर्शा रही थी । उनका इस तरह प्रकट होना मुंझे किसी प्राकृतिक आपदा के होने की चेतावनी लगी।

गिरजाघर में स्थित मुख्य वेदी पर पवित्र यूखरिस्त की आराधना चल रही थी। और अपनी ओर से मैं खड़ा हुआ और चर्च में लोगों की ओर मुड़ा और उनसे प्रार्थना करने को कहा। कार्यकारिणी समिति को बुलाया गया और संकल्प लिया गया कि प्राकृतिक विपदाओं से बचने के लिए मनोयोग से माला का जप किया जाय ।

धन्य माँ ने स्पष्ट रूप से इस बात पर जोर दिया है कि उनका संदेश केवल कलावूर, अलाप्पुझा, केरल, भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए हैं। उनहोंने वादा किया कि अगर हम उसके संदेश को व्यवहार में लाते हैं तो हम बच जाएंगे।

24 दिसंबर 2004 को मेरे दीक्षांत समारोह के वर्षगांठ दिवस पर, हरे रंग की मोमबत्तियों को आशीर्वाद दिया गया और विश्वासियों को लगातार प्रार्थना करने और अपने सभी भाइयों और बहनों के लिए प्राश्चित्य करने का निर्देश दिया ताकि हम सभी अपनी जान बचाएं और दुनिया को भी बचाएं।

इस प्रार्थना का प्रतिफल बहुत अनुग्रह भरा था।सुनामी के खतरे ने समाज घवराया हुआ था। हलाकि 26 दिसंबर 2004 को सुनामी आया लेकिन उसका उतना बुरा असर इलाके में नहीं पड़ा और इलाके में शांति बहाल रही धन्य माँ कि आशीर्वाद से।

अपने रिट्रीट में मैं कृपासनम, कलावूर, अलाप्पुझा में वेदी पर धन्य माता के दर्शन पर बोलता था और हर समय प्रार्थना करने की आदत बनाने के लिए कहता था।

2010 अप्रैल 20 से 2010 अप्रैल 29

पवित्र भूमि के यात्रा के 10 दिन हमने धन्य माता मरियम को समर्पित किया जिन्हो ने यीशु की माँ बनकर मानव इतिहास मे हिस्सेदार बानी । और विजयकुमार ने जॉर्डन नदी के तट पर हमारे प्रभु यीशु मसीह के प्रति अपनी निष्ठा की घोषणा की।

यह 30 अप्रैल 2010 - सुबह 3:30 बजे की घटना है - काहिरा की एक होटल मे मैं आराम कर रहा थ। हम उस स्थान यानि एक गुफा का दौरा करने लौटे थे जहाँ सेंट जोसेफ, धन्य माँ और शिशु यीशु के साथ स्वर्ग के संदेश के अनुसार रुके थे।

धन्य माँ मेरे पास संतों के साथ आई। मैंने संत जोसेफ और पुरोहितो के संरक्षक संत जॉन मैरी वियानी को देखा - वे मेरे बिस्तर के दाईं और बाईं ओर लेटे हुए थे। तब धन्य माँ मेरे पास आई और अपनी 4 पवित्र उँगलियाँ मेरे होठों पर रख दीं- और मैंने होठों को कस कर बीच लिया ताकि मुँह से लार बाहर न निकले। मैं उत्तेजित और आश्चर्यचकित हो गया और खुशी के मारे नील नदी के गहरे पानी में कूद गया।

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भगवान की इच्छा और कृपा से धन्य माँ मरियम ने मुझे उन सभी की मदद करने के लिए चुना है जो मोक्ष चाहते है।

कृपासनम् माता सिद्ध करती है कि यहीं से उनका प्रकाश और उनकी विजय विश्व के समस्त राष्ट्रों में फैलेगी। टेलीविजन चैनलों और सोशल मीडिया की मदद से शारीरिक और आध्यात्मिक उपचार कुछ को नहीं बल्कि सैकड़ों और हजारों लोगों द्वारा रिपोर्ट किए जा रहे हैं। कृपसनम् का चमत्कार पूरी दुनिया में फैले हुए हैं।  

पवित्र भूमि की तीर्थयात्रा के बाद, मुझे उनके सामने रिपोर्ट करने के लिए माननीय बिशप स्टीफन द्वारा आदेश दिया गया था।

मुझे अपना स्थानांतरण आदेश वलिया कलावूर सेंट जोसेफ चर्च के लिए सौंपने के लिए बुलाया गया था।

चर्च निर्माणाधीन था और इसे पूरा करने के लिए लगभग 1 करोड़ 25 लाख या उससे अधिक की आवश्यकता थी । हालाँकि इस स्थानांतरण आदेश ने साबित कर दिया कि मिस्र में मेरा जो सपना था, वह केवल एक सपना नहीं है, बल्कि एक वास्तविकता है जो यह समझाती है कि सेंट जोसेफ जो वलिया कलावूर चर्च में प्रतिष्ठित हैं और यह भी कि हमारी माता मरियम ने मुझे दुनिया में अपनी उपस्थिति का गवाह बनने के लिए चुना है मरियन विधान प्रार्थना के माध्यम से।  

चर्च का निर्माण बिना किसी ऋण या दायित्व के बहुत खूबसूरती से पूरा हो गया और 29 अक्टूबर 2014 को उसका अभिषेक हुआ। वलिया कलावूर सेंट जोसेफ चर्च की निर्माण की कहानी माता मरियम और वलिया कलावूर चर्च के संरक्षक संत जोसेफ के आशीर्वाद के साथ खुशी से समाप्त हुआ। 

मैं भगवान से संकेत के रूप में एक अद्भुत उपहार से सुशोभित था।कला रूपों के पुनरुद्धार के लिए भगवान की योजना - मानवीय अध्ययन - मंच कला - पुथेनपना, अम्मानम, देवस्थविली, चविट्टु नाडकम आदि पर शोध, अध्ययन और थीसिस। मेरा अकादमिक अध्ययन और उस पर शोध 1990 -1992 की अवधि के दौरान शुरू हुआ था। जिस चर्च मे मैं सेवा कर रहा था उसका नाम "थम्बोली माता " रखा गया था(मैरियन चर्च)।पत्थर पर घुटने टेक कर 9.30 - 10.30 PM तक दैनिक रोज़री प्रार्थना के बाद मैं 17 वर्षों तक पूरी रात अध्ययन और शोध खोज में लगा रहा। उन दिनों की प्रार्थना, सतर्कता और कड़ी मेहनत के अंत में उक्त कला रूप आदि के बारे में निर्दिष्ट सभी विषयों पर जानकारी देने वाला "द इनसाइक्लोपीडिया" प्रकाशित हुआ।

राज्य सरकार ने मेरे शोध को मंजूरी दी और अकादमी ने मेरे काम को प्रकाशित किया। इंटरनेशनल तमिल यूनिवर्सिटी-होनोलूलू यू.एस.ए. ने मेरे अध्ययन के लिए मुझे डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की।

एक गर्वित और बड़ी सभा की उपस्थिति में मदुरै तमिलनाडु में मुझे अंतर्राष्ट्रीय तमिल विश्वविद्यालय की डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। भारत की केंद्र सरकार ने मुझे 2008 में सीनियर फेलोशिप प्रदान की और केरल राज्य सरकार ने मुझे केरल की साहित्य अकादमी की छात्रवृत्ति प्रदान की।

मदुरै तमिलनाडु में आयोजित समारोह में अंतर्राष्ट्रीय तमिल विश्वविद्यालय, होनेलुलु, यू.एस.ए से डॉक्टरेट प्राप्त करने के बाद, मैंने अपने साथी श्री विजयकुमार से अपनी इच्छा व्यक्त की कि हमें उन्हें समर्पित एक चर्च में मदर मैरी को धन्यवाद देना चाहता हूँ। जवाब में विजयकुमार ने मुझे बताया कि मदुरै से सिर्फ 30 मील दूर "वाडीपट्टी" में एक मैरिएन चर्च है।

हम वाडिपट्टी सेंट मैरी चर्च पहुंचे, मेरे साथी चर्च में गए और प्रार्थना की, लेकिन मैं चर्च में प्रवेश नहीं कर पा रहा था । मेरे दोस्त इस अजीब घटना से हैरान थे और उन्होंने मुझे इसका कारण बताने के लिए कहा।

उत्तर- यह था कि धन्य माता ने मुझे गिरजाघर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी थी, इस का कारण यह था कि 2004 में कृपासनम में धन्य माता की प्रत्यष्ट होने की खबर को मैंने कलीसियाई अधिकारियों के समक्ष नहीं रखा था कि कृपासनम, कलावूर में धन्य माता का प्रकट होना वास्तविक है और इस बात का जाँच कर अंतिम निर्णय घोषित किया जाय।

मुझे भगवान ने माता मरियम के माध्यम से दुनिया को एक उपहार पेश करने के लिए चुना है ताकि सभी मानवता को मोक्ष पाने में मदद मिल सके। हाय !! मेरी ओर से मैंने जान-बूझकर माँ के प्रत्यष्ट होने (प्रत्यक्षीकरण) को दबा दिया और इसके बारे में बिना किसी जांच के आगे बढ़ गया।

2004 में 7 दिसंबर को दोपहर 2.30बजे धन्य माँ ने मुझे दर्शन दिया था। जैसा कि ऊपर कहा गया है, मैंने कलीसियाई अधिकारियों से संपर्क नहीं किया कि कृपासनम,कलावूर में धन्य माता का प्रकट होना वास्तविक है और इस बात का जाँच कर अंतिम निर्णय घोषित किया जाय। धन्य माँ का इस तरह कलावूर में प्रत्यक्ष होना, उनके पवित्र ह्रदय में समस्त मानव जाती कि लिए उमड़ता प्यार और विश्वास है।

विश्व शांति और पापियों के धर्मांतरण के लिए उत्साहपूर्वक माला की प्रार्थना करने के बाद मैंने 10 मिनट के अंतराल में हमारी माता मरियम के निर्देश के अनुसार प्रत्यक्षीकरण प्रार्थना की रचना की।

प्रार्थना छपी और कृपासनम माता के कई हजारों भक्तों के बीच प्रसारित की गई, जिन्होंने "प्रत्यक्षीकरणप्रार्थना" की।

माँ मरियम ने जैनी नामक एक डिग्री के छात्रा को दर्शन दिया। जैनी का हाथ पेट्रोलियम जेल्ली से जल कर बहुत गंभीर रूप से घायल थी और अस्पताल में भर्ती थी। कृपासनम से प्रत्यक्षीकरण प्रार्थना प्राप्त व्यक्ति की ऑन्टी प्रार्थना लेकर सीधे वैकम अस्पताल में भर्ती मरीज की पास पहुंची । ऑन्टी ने प्रत्यक्षीकरण प्रार्थना जैनी को दिया। उसने उसको पढ़कर प्रार्थना की। उस रात माँ ने उसको सपने में दर्शन दिया। उसके हाथ को स्पर्श कर ठीक करदिया और हाथ को पहले जैसा करदिया। अद्भुत स्वस्थ पानेवाली जैनी सुबह कृपासनम पहुंचकर मुझसे मिली और आश्चर्य चकित होकर रात का सारा वृतांत विस्तार में सुनाया। मैरियन भक्तों ने उत्साहपूर्वक प्रार्थना की और अनगिनत लोगों ने अद्भुत चमत्कारों के साथ पवित्र माता के दिव्य मध्यस्तथा का अनुभव किया। यह कृपसनम में पवित्र माता के दर्शन के साथ कृपासनम में एक स्वर्गीय योजना को लागू करने के लिए स्वर्ग से संकेत था।

माँ मरियम ने जैनी नामक एक डिग्री के छात्रा को दर्शन दिया। जैनी का हाथ पेट्रोलियम जेल्ली से जल कर बहुत गंभीर रूप से घायल थी और अस्पताल में भर्ती थी। कृपासनम से प्रत्यक्षीकरण प्रार्थना प्राप्त व्यक्ति की ऑन्टी प्रार्थना लेकर सीधे वैकम अस्पताल में भर्ती मरीज की पास पहुंची । ऑन्टी ने प्रत्यक्षीकरण प्रार्थना जैनी को दिया। उसने उसको पढ़कर प्रार्थना की। उस रात माँ ने उसको सपने में दर्शन दिया। उसके हाथ को स्पर्श कर ठीक करदिया और हाथ को पहले जैसा करदिया। अद्भुत स्वस्थ पानेवाली जैनी सुबह कृपासनम पहुंचकर मुझसे मिली और आश्चर्य चकित होकर रात का सारा वृतांत विस्तार में सुनाया। मैरियन भक्तों ने उत्साहपूर्वक प्रार्थना की और अनगिनत लोगों ने अद्भुत चमत्कारों के साथ पवित्र माता के दिव्य मध्यस्तथा का अनुभव किया। यह कृपसनम में पवित्र माता के दर्शन के साथ कृपासनम में एक स्वर्गीय योजना को लागू करने के लिए स्वर्ग से संकेत था।